अकेलेपन का अवसाद!!
मै विचलित हो गई हूँ इससे.., आस पास के अच्छे खासे लोगों, साथियों को इसमें ढसता देख कर!! यह मानो सर्वव्यापी होने चला है! आत्माएं कुंठित कर रहा है!
मै मानती हूँ इस समय में खुद में आनंद बचाए रखना आसान नहीं है. .. पर आत्म आनंद ही एकमात्र दवा है इस रोग की..
आप जाईये.. . दोस्त बनाईये, प्रेमी-प्रेमिका ढूंढ लिजिये, माँ से लिपट जाईये या पिता से चिपक जाईये.. पर कोई भी हर वक्त आपके साथ नही रहेगा! जिन्दगी आपको कभी ना कभी फिर अलग-थलग फैंकेगी! और इसके अलावा अगर आप बागी हैं, या स्वतंत्र सोच रखते हैं तो आपके जितने मैने नहीं होंगे उससे अधिक मतभेद होंगे..!
ये मत भेद जाने अनजाने कब मन भेद बन जाते हैं पता भी नही चलता!
अलगाव भी अवसाद को जन्म देता है, और अवसाद आपकी जीने की चाह को.. आपके सपनों को खोखला कर देता है! और अंतः आप खुद ही खुद को खत्म करने लगते हैं, आत्महत्या ना भी करें तो भी बिना आनंद, इच्छा, प्रेम के जीना व्यर्थ ही है |
मै इतना सब इसलिए कह रही हूँ क्योंकि मै भी आपकी जैसी ही हूँ मैने भी एक लम्बा समय जीवित रहने के साधन ढूँढने में लगाया है..जब सब कुछ अंत नज़र आ रहा था तब कुछ कुछ करके फिर से अपने आप को जीवित किया है!
और वह जिसने मेरा साथ दिया वो कोई और नहीं मै ही हूँ.. हाँ!!
आपके अवसाद का हल आप ही हैं., आपको अपने से मित्रता करनी होगी, प्रेम करना होगा और अपना ख़याल रखना होगा | मै आपको खुद में संकीर्ण होने को नही कह रही पर.. खुद का दायरा बढ़ाने को कहा रही हूँ.. |
अपने आप को पहचाने, उस पहचान को एक लक्ष्य दें और वो लक्ष्य आपको जीने की शक्ति देगा!
पर ध्यान रखें ये लक्ष्य अधिकारी बन जाने या पैसे कमाने जैसा नही है! ये लक्ष्य जीवन कला से प्रेरित हो आप कुछ निराकार को पाने निकल पड़े जैसे.. .
जैसे मै मान्वता के लिए काम करना चाहती हूँ पर मुझे इसके लिए दृढ़ होना चाहिए पागल नही कि यदि कभी मुझे हिगल(राजनीतिशास्त्र विचारक) की बात पर विश्वास हो जाए कि इन्सान की कौम ही खराब है तो मै हार मान कर अवसादग्रस्त हो जाऊँ.. असल में हमारे अवसाद का कारण ही है कि हम विपरित परिणामों से आगे नही बढ़ पाते पर जब हमारा लक्ष्य निराकार होता है तो हम परिणाम की फिक्र नही करते केवल कर्म करते जाते हैं, वो कर्म जो हमे पसंद है!
खुद को इतना सशक्त करना बहुत जरूरी है कि आप अपनी हँसी के लिए किसी और का इन्तजार ना करते रह जाएं | मै ये बिल्कुल नही कहा रही कि इससे आपको दुख होना बंद हो जायेगा या कोई तकलीफ नहीं रहेगी.. , पर दुख और अवसाद में फर्क है|
कोई दोस्त बिछड़ गया या प्रेम असफल हो गया, या कोई समझ नही रहा, साथ नहीं दे रहा तो दुख करें, अवसाद नही!
सुख-दुख प्राकृतिक हैं, अवसाद नही!
और
अवसाद का एक ही इलाज है, मै दोहराती हूँ, वो आप ही हैं, आपसे अधिक यहाँ आपको कोई प्रेम नही कर सकता ना समझ सकता है!
अगर आप अकेले हैं तो उसको एकांत बनाए, उम्मीदों से बचें और खुद पर आपार विश्वास रखें..
कोई भी व्यक्ति आपको एक या दो बार समझायेगा पर जीवन सागर पार तो अपने निराकार पर ही होगा! खोजो उसे.., सोचो की हाँ जो जीवन केवल एक ही बार मिलता है वो क्यों मिला है!
किसी बेवफा के लिए रोने के लिए? या प्रेमी के लिए पछताने के लिए?
नहीं! बिल्कुल नहीं!
अपना निराकार जिस दिन खोज लोगे उसे दिन ये विकार मिट जायेगा! प्रेम बन जाओ, प्रेमी नही!
जीयो.. . अपने साथ को अनदेखा मत करो, सुख-दुख आनंद देगे... विश्वास रखो|